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लेखक-राहुल दुबे

राहुल दुबे

नमस्कार मैं रविश कुमार। 

कल सुबह-सुबह खबर आई कि अमेरिका में ओलिम्पिक चैंपियन नीरज चोपड़ा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक( सिल्वर मेडल) जीत लिया है, इस खबर के आते ही हिंदूवादी Quote तू भी राणा का वंशज है फेंक जहां तक भाला जाए पहली नजर में ही ये वाक्य समाज विरोधी लगता है, आखिर अकबर को मानने वाला नोयडा का अब्दुल राणा के वंशज कहने पर नीरज की जीत को कैसे सेलिब्रेट कर सकता है, देश मे पहले ही मजहब विशेष को दबाने का प्रयास किया जा रहा है, अभी हाल में ही बिहार से कुछ कूटरचित दस्तावेज सामने लाये गए जिसमे PFI के मासूम कार्यकर्ताओं को फंसाने की कोशिश की जा रही है, यदि एक पल के लिए मान भी ले कि वे सच में 2047 में भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की तैयारी में थे तो क्या ही दिक्कत है, आखिर हमारा संविधान तो सेक्युलर है, आखिर एक अल्पसंख्यक को उसके लक्ष्य को प्राप्त करने से क्यों रोकना, आखिर देश के युवा को रोजगार से मतलब होना चाहिए कि कोई मासूम मौलवी क्या प्लान कर रहा है उससे होना चाहिए। खैर युवा से याद आया नीरज चोपड़ा से सबको उम्मीदे गोल्ड की थी लेकिन नीरज सिल्वर ही जीता इसके लिए खेल विशेषज्ञ अपने अपने तर्क दे सकते है लेकिन नीरज ने लाख प्रतिभा होने के बावजूद भी देश के लिए इस मुश्किल घड़ी में सिल्वर जीतकर Secularism, आपसी प्रेम, का संदेश दिया है, ऐसा कहने पर IT सेल मुझे बावला कह सकते है लेकिन यही सत्य है, जरा सोचिए यदि नीरज गोल्ड जीता होता, मेरे अनुसार सोना उस हिंदुत्व का प्रतीक है, जो अकबर को महान न बताकर स्वयं को राणा का वंशज बोलता है,  लेकिन चांदी तो सबकी है, सफ़ेद तो सब होता है, हर कोई सफेद को अपना मानता है, सफेद की तो कोई जाति नही है, मुझे लगता है, नीरज ने अबकी चांदी जीतकर अपने ओलिम्पिक में हुई भूल का सुधार किया है।। 

नीरज ने चांदी जीतकर हम सफेद प्रेमी लोगो को ये संदेश दिया है कि आप इस Brahminical Vegetarian Patriarchy के खिलाफ संघर्ष करिए आपको मेरा मौन समर्थन रहेगा। अबकी एथलेटिक्स चैंपियनशिप अमेरिका में हो रही थी, जो अश्वेत लोगो के मजबूत संघर्ष का घर रहा है और वहां नीरज ने एक अश्वेत खिलाड़ी Petersons से हारकर Black Lives matter मूवमेंट को भी अपना समर्थन दर्ज कराया है, 24 का लड़का नीरज हमारे लिए कितना संघर्ष कर रहा है, उसकी एक टूर्नामेंट में जीत हमारे संघर्ष के लिए एक बूस्टर डोज का काम कर गयी है।। 

नीरज ने युवाओं को भी ये सीख दे गए है कि जरूरी नही है कि आप हर बार बोले ही कई बार आपकी जीत के स्तर भी आपके विरोध को जता सकते है।। 

एक समाज के तौर पर हमें नीरज जैसे युवाओं की आवश्यकता है जो समाज की जिम्मेदारी से वाकिफ है धोनी, तेंदुलकर जैसे नही है जो सिर्फ पैसे कमाना चाहते है, कोटि कोटि प्रणाम है मेरा नीरज को।। 

डिस्क्लेमर- लड़के ने Satire का असफल प्रयास किया है और यदि आप इसे पढकर हंसते है या कुंठित होते है तो ये लड़के की मनोवैज्ञानिक जीत है।। 

जय रविश। जय भीम।।

लेखक-राहुल दुबे

राहुल दुबे

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