
दुनिया आपके हिसाब से नही नहीं चलेगी
आपका – विपुल
दुनिया आपके हिसाब से नही नहीं चलेगी,
आपको ही दुनिया के हिसाब से चलना होगा।
आपको अच्छा लगे या बुरा सत्य तो यही है।
आप दुनिया को अपने हिसाब से नहीं चला सकते।
आप क्या चलायेंगे?
सिकंदर सीजर और समुद्रगुप्त भी दुनिया को अपने हिसाब से न चला पाये।
इसलिये बहुत ज्यादा रूखे घमंडी होने का मतलब नहीं।
माई लाइफ माई रूल्स वाले कितने लोग आपने सामाजिक और आर्थिक दुनिया में सफल देखे हैं?
अपने को कम से कम नुकसान पहुंचाये बिना दूसरों के हिसाब से खुद को ढाल लेने वाले लोग ही सफल होते हैं।
आगे और है।

शाहरुख खान ने कितनी एक्शन फिल्में की हैं?
और धड़कन जैसी एकाध फिल्मों को छोड़ अक्षय कुमार ने कितनी रोमांटिक फिल्में की हैं?
शाहरुख को पता था लोग उन्हें एक्शन फिल्मों में पसंद नहीं करेंगे और अक्षय को पता था कि लोग उनसे कॉमेडी और एक्शन फिल्में ही चाहते हैं।
दोनों सफल रहे।
सुरेंद्र मोहन पाठक से लोग रोमांटिक उपन्यास नहीं चाहते और चेतन भगत के जासूसी उपन्यास लोग पसंद नहीं करेंगे।
मोदी और योगी हिंदुत्व के नाम पर वोट बटोर सकते हैं और लालू प्रसाद यादव जाति के नाम पर।
सबके अपने क्षेत्र हैं और उस क्षेत्र के सफल लोगों ने खुद को उस रूप में ढाला जिस रूप में दुनिया उनको देखना चाहती है और वो सफल हो सकते हैं।

इसलिये खुद की अकड़ छोड़ के खुद को उस रूप में ढालने में कोई बुराई नहीं जिस रूप में आप दुनिया को पसंद आने लगें।
कई बार ये जरूरी भी होता है और कई बार मजबूरी भी।
एक अहंकारी व्यक्ति सेल्स की फील्ड में ज्यादा सफल नहीं हो सकता।
एक अंतर्मुखी व्यक्ति फील्ड जाब में ज्यादा सफल नहीं हो सकता।
एक घमंडी व्यक्ति अपना व्यापार नहीं बढ़ा सकता, भले ही उसके प्रोडक्ट टॉप क्लास के हों।
जिसको गंदगी से बहुत ज्यादा घिन आती हो, वो डॉक्टर नहीं बन सकता।
जिसकी धूल मिट्टी से मानसिक एलर्जी होती हो (वास्तविक एलर्जी की बार नहीं कर रहा, वो जेनुइन होती है) , वो सिविल इंजीनियर का काम कैसे निपटाएगा?
पर फिर भी मैंने बेहद अहंकारी लोगों को अपनी जॉब या अपने व्यापार के हित के लिये अपना अहंकार छोड़ के सबसे सरल बनकर मिलते देखा है।
हमेशा सफाई में रहे नाजुक मिजाज रईस लोगों को उनके डॉक्टरी प्रोफेशन में मरीजों की गंदगी से जूझते देखा है और धूल से हल्की एलर्जी वाले लोगों को दवा खाकर सिविल इंजीनियर का काम करते देखा है।
आपको दूसरों के हिसाब से खुद को ढालना पड़ता है, अगर आप सफल होना चाहते हैं तो।
वरना अपनी अकड़, अपना अभिमान, अपना गुरूर, अपना घमंड लेकर अकेले पड़े रहें।
किसी को क्या पड़ी?

जहां तक मेरी बात है तो मैं कॉलेज लाइफ और उसके बाद भी एक घमंडी अकडू और बेहद अंतर्मुखी इंसान हुआ करता था। शायद ही अपनी तरफ से किसी से बोलता था। एक श्रेष्ठता का भाव रहता था। पर ईश्वर स्कोर सेटल कर ही देते हैं।
मुझे शुरुआत से ही ऐसी नौकरियां मिली जो मेरे काम से ज्यादा दूसरों के मेरे प्रति व्यवहार पर आधारित थीं।
शुरू में असफल रहने के बाद मुझे समझ आया कि अगर मुझे चार पैसे कमाने हैं तो अपना घमंड छोड़ के दूसरे लोगों से अपनी तरफ से तपाक से मिलना पड़ेगा।
मैंने नज़रें घुमा के देखा -दुत्कारे जाने वाले बीमा एजेंट, सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की गालियां खाने वाले मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, दिन भर में एक ऑर्डर के लिये पचासों दुकानदारों और डीलर से झगड़ते सेल्स मैन,
सब यहीं तो कर रहे थे।
और ये सब करना पड़ता ही है।
अगर आपको इस दुनिया में रहना है तो।
दुनिया में सफल होना है तो।
पांच अरब की दुनिया की आबादी में अंबानी या मस्क जैसे सुपर रिच गिनती में सौ सवा सौ ही होंगे।
बाकियों को दुनिया के हिसाब से ही खुद को ढालना पड़ता है।
और वैसे मस्क और अंबानी भी दुनिया के हिसाब से ही चलते हैं।
है न?
आपका -विपुल
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