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आपका -विपुल

डिप्रेशन पर कुछ बातें

डिप्रेशन एक बहुत नॉर्मल सा शब्द बना दिया लोगों ने।
इंडस्ट्री सी खुल गई डिप्रेशन दूर करने की।
फैशनेबल सा बना दिया डिप्रेशन शब्द।
हर दूसरा एलीट कॉलर ऊंचा करके ज्ञान देकर के चला जाता है जो नशेबाजी के साइड इफेक्ट और समाज से कटने के साइड इफेक्ट को मानसिक समस्या मान बैठा है।

कोई हंस के बता रहा है कि उसे कोविड के बाद डिप्रेशन हो गया है,कोई अपनी आईपीएल टीम के हारने पर डिप्रेशन में खुद को बता रहा है, कोई अपनी पार्टी के चुनाव हारने पर
मतलब, ये इतना आसान है क्या?इतनी छोटी सी चीज है क्या?
और फिर जब असली मानसिक रोग होते हैं तो मुंह बा के रह जाते हैं ऐसे लोग।

बहुत सारे मानसिक रोगों में से डिप्रेशन या अवसाद भी एक रोग है। ये बुखार जैसा है। खुद में एक रोग है, पर लगभग हर बार ये किसी न किसी दूसरे मानसिक रोग के कारण ही होता है।
जैसे बुखार स्वयं में एक रोग है,पर ज्यादातर इसके होने के कारण में कोई दूसरा शारीरिक रोग होता है।

तो डिप्रेशन का इलाज मतलब केवल डिप्रेशन के इलाज से ही नहीं होता।
यहां मैं बताता चलूं कि मैं कोई मानसिक रोग विशेषज्ञ नहीं हूं, पर मानसिक रोगी ज़रूर रह चुका हूं और जो कुछ भी बोल रहा हूं वो स्वयं के अनुभवों पर आधारित है
मुख्य रूप से डिप्रेशन या किसी भी मानसिक रोग के मात्र 3 ही कारण होते हैं।

1 -आर्थिक कारण
2- सेक्सुअल समस्याएं
3 – वंशानुगत कारण।

मुख्यतया केवल ऊपर के दो कारण ही मुख्य होते हैं।तीसरे कारण जो कि वंशानुगत है के केस कम होते हैं और इनका इलाज भी उतना ही मुश्किल होता है जितना एक वंशानुगत कारणों से अधेड़ उम्र में गंजे होने वाले पुरुषों के गंजेपन का इलाज करना।
आजकल युवावस्था में डिप्रेशन का प्रथम स्तर बहुत साधारण हो चुका है मुख्यतया आर्थिक समस्याओं से जूझते लड़कों में,पर बहुत से लड़कों को इसका पता ही नहीं चलता और वो खुद ही सही भी हो जाते हैं।क्योंकि उनमें ऊर्जा होती है और उत्साह भी।
जीवन जैसे सेट होता है, इस बीमारी से निकल लेते हैं।

और ये डिप्रेशन का प्रथम स्तर कभी मारक नहीं होता।
दूसरे स्तर पर समस्या उत्पन्न होती है, जब व्यक्ति खुद को इन आर्थिक समस्याओं से या सेक्सुअल समस्याओं से निपटने में अक्षम पाने लगता है , तब उसे परिवार और दोस्तों के सहारे के जरूरत होती है। पर वो खुद
लोगों से कटने लगता है और आत्मविश्वास में कमी महसूस करता है।
और समस्या ज्यादा बिगड़ने पर व्यक्ति इतना ज्यादा घबराने लगता है कि लोगों से मिलने जुलने में बहुत डरने लगता है कि पता नहीं लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं क्या कहते हैं।
और चौथा चरण बहुत खतरनाक होता है, जब व्यक्ति दीन दुनिया से बेजार हो
जाता है।अच्छा बुरा लगना बंद हो जाता है उसे।

अंत आत्महत्या तक जा सकता ऐसे मानसिक रोगी का जिसे रोकने के लिये उसके आसपास वाले उसके परिवार वाले उसके दोस्त ही मदद कर सकते हैं।
इलाज तो जरूरी है और अपनी जगह है ही पर परिवार और दोस्तों का साथ महत्वपूर्ण होता है।
आपके आसपास ऐसा कोई व्यक्ति हो तो उसके साथ समय बितायें।

खेल कूद में उसकी रुचि बढ़वायें।
कार्टून से पोर्न तक जिससे वो खुश वो पाये, वो बात करें।
और ऐसे व्यक्ति के आसपास कम उम्र के शरारती बच्चे ज़रूर रहें। ध्यान रखिये।
छोटे बच्चों का साथ एक बेहतरीन दवाई होता है।
जीवन अनमोल है और डिप्रेशन मजाक की चीज नहीं है।

इस पोस्ट का क्यू आर कोड


🙏🙏🙏🙏

आपका -विपुल
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