
जिंदा रहना बहुत जरूरी है।
आपका- विपुल
सबेरे उठ के देखा। दुनिया वैसी की वैसी है।
बस पड़ोस में एक लोग लटक के खत्म हो गये। कुछ ऐसी वैसी बात थी जो वो नहीं चाहते थे दुनिया के सामने आये।
पर उनके मरने के बाद सामने आ गई।
क्या फायदा हुआ?
मरने के बाद होने वाली बेइज्जती से जिंदा आदमी की बेइज्जती भली।
आगे वो फिर कमा लेगा इज्जत!
पर मुर्दा कैसे दोबारा इज्जत कमाने आयेगा?
वो तो मर ही गया। उसकी बेइज्जती स्थाई हो गई।
वैसे ही जैसे मरने के ठीक पहले होने वाली वसीयत।
भले जिसको वसीयत की, वो नाकाबिल हो पर मरने के बाद कैसे बदलोगे?
जिंदा रहना बहुत जरूरी है।
सबसे ज़रूरी है।
सबसे ज्यादा जरूरी है।
जिंदा रह के आप चीजें बदल सकते हैं।
कम से कम बदलने का प्रयास तो कर ही सकते हैं।
दुनिया सोशल मीडिया कितनी भी वायरल दुनिया।
पर यहां हमारे सारे रिश्तेदार ही नहीं बैठे जिनके हमारे बारे में कुछ जानने से हमें बहुत फर्क पड़े।
बेशर्मी जिंदा रहने के लिये बहुत जरूरी है।
बेशर्म जिंदा आदमी इज्जतदार मुर्दा आदमी से हमेशा अच्छा रहता है।
भारत का मध्यकालीन इतिहास गवाही देता है।
मोहम्मद गोरी कितनी बार हार के बेइज्जत हुआ था?
पर वो जिंदा रहा। जीत गया।
यहां हमारे राजाओं ने हारने के बाद खुद को जिंदा जला लिया।
मैं नहीं कहता कि सारे ऐतिहासिक तथ्य सही हैं।
पर सारे गलत भी नहीं।
और अपने आसपास भी देखें जरा।
बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके बारे में सबको पता होता है कि वो कैसे हैं फिर भी समाज में वो सबके सामने आते हैं और उनसे उनके मुंह पर कोई बोल न पाता।
रही पीठ पीछे की बात तो पीठ पीछे बुराई निंदा तो सबकी होती है।
एक उदाहरण!

अतुल सुभाष का ही ले लें।
वोही निकिता सिंघानिया का पति।
क्या हुआ अतुल सुभाष का?
मर के चला गया।
अपने बच्चे को अपनी बीवी से दूर रहने का पत्र लिख के गया था।
कटु सच्चाई क्या हुई?
बच्चा निकिता सिंघानिया के पास।जायदाद भी ले लेगी। तलाक हुआ नहीं था।
अतुल को क्या मिला?
घंटा!
अतुल को लटकने का फायदा नहीं हुआ। समय रैना के शो पर रणवीर अलाहाबादिया के एक कमेंट पर भारत में अतुल सुभाष की आत्महत्या से ज्यादा चर्चा हुई। संसदीय समिति तक में बात उठी। दो मुख्यमंत्री इसमें कूदे।
अतुल सुभाष ने आत्महत्या की।
उसको उसका क्या लाभ मिला?
घंटा!
ऐश अभी भी निकिता की ही है।
खुद को मारने के बाद कौन क्या कर सकता है अपनी छवि सुधारने के लिये?
हां!जिंदा रह के जरूर आप चीज़ें मैनेज कर सकते हैं। सुधारने का प्रयास कर सकते हैं।
गलतियों को सही करने की कोशिश कर सकते हैं।
मुर्दा आदमी लोगों का समय बर्बाद करने के अलावा कुछ और काम नहीं कर सकता।
एक आत्महत्या वाली लाश तो और ज्यादा समय खराब करती है।
अगर बात छुपाओगे तो भी और पोस्ट मॉर्टम होगा। तो भी।
पोस्ट मॉर्टम हाउस जाओगे तो पता चलेगा अपनी बॉडी का नंबर जल्दी लगवाने को भी सुविधा शुल्क देना पड़ता है।
डॉक्टर गिरी नजरों से देखते हैं ऐसे मृतक के परिजनों को।
और भारत जापान भी नहीं है।जहां आत्महत्या को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हो।इसे अकाल मृत्यु ही मानते हैं हमारे धर्मग्रंथों में।मोक्ष छोड़ो धरती ही न छूट पाती।प्रेत बन के यहीं टहलोगे।
और फिर वही बात ऐसा करना ही क्यों?
बदनामी की वजह से?
उधार न चुका पाने से?
ब्लैकमेलिंग की वजह से?
अगर आप पुलिस वालो के साथ कभी बैठे उठें तो वो आपको बता देंगे कि 90प्रतिशत ब्लैकमेलिंग के केस ऐसे होते हैं जो अगर पीड़ित एक बार अपने परिजनों को और पुलिस को बता दे तो ऐसे ही निपट सकते हैं।
दूसरी बात ये कि गलतियां सबसे होती हैं।
कोई भी दूध का धुला नहीं यहां।
फिर डरना कैसा बेइज्जती से?
जिंदा रह के ही चीजें सुलझ सकती हैं।
मैदान में रह के ही आप जीत सकते हैं।
मैदान से बाहर होने के बाद आप कुछ नहीं कर सकते।

एक और बात।
जरा गंभीरता से सोचो!
आपको कितने लोग जानते हैं।
और उनमें से कितने लोग आपके जीवन के बारे में कुछ प्रभाव डाल सकते हैं?
आज गिनती करना।
1000 लोग?
किसी की जिंदगी में 100 लोगों से ज्यादा हो ही नहीं हो सकते जिनसे आपका ऐसा घनिष्ठ संबंध हो कि वो आपके बारे में सब जाने और आपके बारे में उनके कुछ सोचने से आपके जीवन पर प्रभाव पड़े।। चार गली आगे रहने वाले तक को नहीं पता होगा आपके बारे में।
फिर?
जिंदा रहना बहुत महत्वपूर्ण है।
आपका जिंदा रहना बहुत महत्वपूर्ण है।ये आप ही हैं जो आपकी जिंदगी में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होने चाहिये।
आपका जीवन अनमोल है।
कोई दूसरा आपके बारे में क्या सोचता है, क्या कहता है, क्या विचार रखता है।
ये महत्वपूर्ण नहीं है।
लटकने की मत सोचो।
जीने की सोचो।
बहुत कुछ रंगीन है यहां।
और आपके लटकने से किसी को घंटा फर्क नहीं पड़ेगा।
मोदी भारत के पी एम ही रहेंगे।अड़ोस पड़ोस के लोगों का जीवन वैसे ही चलता रहेगा यहां तक कि आपके परिवार के लोगों का भी।
आत्महत्या में तो इंश्योरेंस भी न मिलता।
घर वाले गाली और देंगे।
सहानुभूति केवल जिंदा लोगों को मिलती है।
जिंदा रहें।
🙏
आपका – विपुल
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