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विपुल

बहुत दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ प्रेम पर।
आप मुझसे असहमत हो सकते हैं ,लेकिन मेरे लिये बिना काम के प्रेम अधूरा है, बल्कि है ही नहीं।
काम जो है न वो प्रेम का एक स्थायी अवयव है।
और रूहानी प्रेम जैसी बकवासों पर मैं यकीन नहीं रखता।
अपनी संस्कृति देखिये
सीता राम ,उमा महादेव का प्रेम

हमारे जितने भी मंत्रदृष्टा ऋषि थे, विवाहित थे।
संतान भी कीं, ।
हमारे सभी देवी देव विवाहित ही थे।
राम सीता, उमा महादेव ,कृष्ण रुक्मिणी , विष्णु लक्ष्मी।
अभी आप राधा कृष्ण को लेकर आएंगे तो भाई थोड़ा अपने शास्त्र ,इतिहास पढ़ो।
राधा का जिक्र न भागवत में है ,न मूल महाभारत में

और इस्लाम के आगमन के पहले श्रीकृष्ण एक सफल कूटनीतिक के तौर पर भारतीय जनमानस में थे।रासबिहारी के तौर पर नहीं।
पद्म पुराण में राधा का उल्लेख है पर वो भागवत और महाभारत जैसा प्रामाणिक ग्रंथ नहीं है।
इस्लामिक सुल्तानों के समय जब सूफियों का कार्यक्रम भारत में होना शुरू हुआ तब एक यौनिकता को धर्म से जोड़ने का प्रचलन उन्होंने शुरू किया।
एक तो सूफी परमेश्वर को प्रेमिका मानते थे ,खुद को प्रेमी ।ये उस भारतीय जनमानस को हजम नहीं होता था जो दास्य और सख्य केवल दो भावों की भक्ति ही जानता था।।
कबीर के पहले कुछ सिद्ध थे जिनका काम वैदिक धर्म को नीचा दिखाना था।
कबीर दादूदयाल की ये परम्परा नानक तक गई ।इन्होंने प्रेम को भक्ति का मार्ग माना ,जबकि दो पक्के सनातनी तुलसीदास और सूरदास मध्ययुग में पुरानी दास्य भाव और सख्य भाव पर अड़े रहे।
तो सूफी लोगों से प्रभावित भारतीय दिग्गजों ने प्रेम मार्ग चुना जिसमें सूफियों के उलट ईश्वर को पुरुष माना और खुद को स्त्री।क्योंकि भारतीय जनमानस ईश्वर को स्त्री मानकर उसके साथ काम सम्बन्धों की नहीं सोच सकता था, घृणित था उसके लिये ये।
जबकि सूफियों के लिये जो लौंडेबाजी भी करते थे ,ये सब खराब नहीं था।
लेकिन इस सूफी समुदाय के विचारों का भारतीय जनमानस पर इतना प्रभाव पड़ चुका था कि
राजपूत रानी मीराबाई भी प्रेम मार्ग की उपासिका बन गईं जो राजपूतों के लिये असहज था।
आप गौर करें मुस्लिम भारत में राधा कृष्ण की पेंटिंग्स, राधा कृष्ण पर साहित्य जितना बना उतना किसी और हिन्दू देवी देव पर नहीं बना।
कृष्ण के रास रचैया स्वरुप को बार बार लगातार उकेरा गया।

राधा कृष्ण पति पत्नी नहीं ,प्रेमी युगल थे इसको बार बार रेखांकित किया गया।जानबूझकर ।
रूहानी प्रेम जैसी सूफियाना बकवासों को दम देने के लिये।
रामलीला गोस्वामी तुलसीदास ने इसीलिए चालू करवाई थी कि वैदिक लोग प्रेम पूजा से निकल कर उस व्यक्तिव को भी जानें जिसने शस्त्रों के दम पर विजय
प्राप्त की।
एक पति जो अपनी पत्नी के लिये तत्कालीन युग की सबसे बड़ी शक्ति से भिड़ गया और पछाड़ दिया।
रामलीला बड़ी चीज़ साबित हुई हिन्दू धर्म के लिये ।
आजतक चल रही है।
तो बात काम और प्रेम की थी।
भाई ,
अपने धर्म के बारे में दो चीज़ें खुल कर जानो।

एक -तुम्हारे किसी धर्मग्रंथ में अहिंसा को प्रोत्साहन नहीं है।
ऋग्वेद में ही है।
अगर मेरे एक हाथ में शस्त्र है तो विजय मेरे दूसरे हाथ में है।
और
और हृदय में धर्म।
दूसरा -आपके धर्म में गृहस्थ को ब्रह्मचारी से ज़्यादा महत्व मिलता है।
संतानोत्पत्ति ज़रूरी है।
और संतानोत्पत्ति के साथ समाज का अर्थशास्त्र भी ,उत्पादन भी।
आपका धर्म संसार से भागना नहीं सिखाता ,
सबसे ज़्यादा प्रैक्टिकल हिन्दू धर्म ही है।
व्यर्थ के धर्म विद्वानों के चक्कर में मत पड़ो।परिवार के साथ जिओ
कमाओ ,एन्जॉय करो।
बस भगवान को याद करते हुए।
गीता सार भी यही है।मेरे अनुसार

और मेरी बात यहीं खत्म होती है।
आपके घर में रखी रहती धार्मिक ग्रंथों को कभी खोल के पढ़ो।बहुत कुछ जानोगे
टीवी वाले गुरुओं के भरोसे न रहो।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

विपुल
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