
कहानी बहुत पहले शुरू हुई थी।
जब कप्तान मिश्रा और तरविंद ट्रेजरीवाल एक साथ राजू चाचा और सोनी चाची की शादी में हिटालिया गांव पहुंचे थे।
कलेवा में बैठने वाले सभी बालकों को दो दो रुपये मिलने थे और इन मिलने वाले पैसों की खुशी से कप्तान को नींद भी न आई थी।
कलेवा सुबह 6 बजे होना था।
कप्तान सुबह 5 बजे ही फ्रेश होने के लिये खेतों में निकल गया था।
तरविंद शुरू से ही दूसरे के पैसों को हड़पने की नियत रखता था। उसने दिमाग लगाया कि अगर कप्तान कलेवा में नहीं पहुंच पायेगा तो कप्तान के दो रुपए भी उसे मिल जायेंगे।
उन दो रूपयों के लिये तरविंद ने बहुत बड़ी चाल चली।
गेंहू के खेत की मेड़ पर लगे आम के पेड़ के नीचे बैठे कप्तान के इस्तेमाल के लिये रखे लोटे के पानी को पैर मार के बहा दिया तरविंद ने और एक कुटिल मुस्कुराहट के साथ कप्तान को देखते हुये निकल गया।

कप्तान मिश्रा था। मिश्रा स्वच्छ रहना पसंद करते हैं।इसलिये कप्तान ने अपनी जगह तब तक न छोड़ी जब तक जब तक उनका विश्वासपात्र साथी गोरख गुप्ता ठीक उसी जगह दिशा मैदान को न पहुंच गया जहां कप्तान बैठा था।
गोरख के लोटे का पानी इस्तेमाल करके कप्तान ने गोरख को दोबारा पानी भर के उसके इस्तेमाल के लिये भर कर दिया।
इस सब में सुबह के सात बज चुके थे।
राजू चाचा का कलेवा हो चुका था और कप्तान मिश्रा के दो रूपयों का नुकसान भी।
उसी दिन उस गेंहू के खेत में खड़े होकर कप्तान मिश्रा ने कसम खाई कि कप्तान की जिंदगी का अब एक ही मकसद है।
तरविंद ट्रेजरीवाल की तबाही!
पर आगे का रास्ता कप्तान के लिये कठिन था। वजह ये कि तरविंद एक हाईक्लास अफसर
बाप का बेटा था और पढ़ाई में अव्वल रहने के कारण उसके टीचर भी तरविंद को पसंद करते थे।
जबकि कप्तान एक मिडल क्लास क्लर्क का बेटा था और पढ़ाई के अलावा स्कूल में जितनी चीज़ें होती थीं सबमें अव्वल था। ऊपर से कप्तान थोड़ा दिमागी रूप से कमजोर भी था क्योंकि बचपन में एक बार वो। बिस्तर से गिरा था और उसके सर में अंदरूनी चोट लगी थी। इस वजह से उसे कुछ चीजें बहुत जल्दी समझ आती थीं। और कुछ बहुत देर में।
वहीं दूसरी ओर तरविंद एक शातिर घाघ और कुटिल लड़का था।

कप्तान के राजू चाचा की शादी में हुए कांड के बाद कप्तान उससे नाराज है ये तरविंद अच्छी तरह जानता था और इससे उसे कोई फर्क भी न पड़ रहा था।
पर अचानक उसे फर्क पड़ा जब उनकी क्लास में आई किमी काटकर।
किमी काटकर एक बेहद खूबसूरत और अमीर अफसर घर की लड़की थी और ज्यादातर सुंदर लड़कियों की तरह उसकी अक्ल भी उसके टखनों के ऊपर और जांघों के नीचे की जगह पर थी।
इसी वजह से उसे कप्तान पसंद आ गया था क्योंकि कप्तान की शक्ल उसकी समझदानी के हिसाब से टेडी बियर से मिलती थी।
कप्तान को गूगली व्यूगली बूश करने के लिए किमी काटकर अब कप्तान की बेंच पर उसके बगल में बैठती थी। तरविंद की नजर भी किमी काटकर पर थी क्योंकि वो अमीर और सुंदर थी। पर किमी से दोस्ती के लिये कप्तान को सांटना जरूरी था क्योंकि किमी केवल कप्तान से ही बात करती थी पूरे स्कूल में।
तरविंद ने बड़े फायदे के लिये अपनी इज्जत का छोटा सा नुकसान उठाना उचित समझा और कप्तान से माफी मांग कर फिर दोस्ती कर ली कप्तान से। सीधे दिल और कमजोर दिमाग के कप्तान ने तरविंद को माफ कर दिया।
जल्द ही तरविंद ट्रेजरीवाल भी कप्तान मिश्रा और न
किमी काटकर के साथ एक ही बेंच पर बैठने लगा।स्कूल में उनकी तिकड़ी मशहूर हो गई।
तरविंद और कप्तान दोनों ही किमी काटकर को चाहते थे।
तरविंद इसलिए क्योंकि किमी सुंदर और अमीर थी।
कप्तान इसलिये क्योंकि किमी उससे पैसे लेकर उसका होमवर्क कर देती थी।
वैसे किमी तरविंद से पैसे लेकर भी उसका होमवर्क करना चाहती थी पर एक बार जब उसने तरविंद से इसके लिए कहा, तब तरविंद ने जवाब दिया -“मिश्रा लोग मंदबुद्धि होता है।मैं नहीं हूं।”
ये बात कप्तान ने सुन ली थी पर कुछ बोला नहीं दोनों से।।
धीमे धीमे जब कप्तान को लगने लगा कि वो किमी काटकर को पसंद करते हैं तो उन्होंने ये अपने करीबी दोस्त तरविंद को ये बताया।
तरविंद ने उसे सलाह दी कि वो वेलेंटाइन डे के दिन गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लेकर किमी काटकर के घर पहुंचे। गुलदस्ता वो खुद लाके देगा कप्तान को।
हाईस्कूल के इम्तिहान के ठीक पहले वाली 14 फरवरी को कप्तान किमी काटकर के घर तरविंद ट्रेजरीवाल द्वारा दिये गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लेकर किमी काटकर के घर अपनी चाहत का इजहार करने पहुंचा और उसके बाद कप्तान अस्पताल पहुंचा दिया गया।
क्योंकि तरविंद ट्रेजरीवाल द्वारा कप्तान को दिया गया गुलाब के फूलों का गुलदस्ता शव पर चढ़ाने वाला गुलदस्ता था और अपने प्यार का कन्फेशन कप्तान साहब ने किमी काटकर के बजाय किमी काटकर की मां से कर दिया था जो उस रोज किमी काटकर के कपड़े पहन के ब्यूटी मास्क लगाए बैठी थी।
कप्तान को किमी ने भी मारा और किमी के बाप ने भी।
उसे बचाया धूर्त तरविंद ने ये कह के कि -” माफ कीजिए! मिश्रा लोग मंदबुद्धि होता है।”
कप्तान अस्पताल पहुंच गया और ट्रेजरीवाल का काम हो गया।

अब वो किमी काटकर के बाप की नजरों में कप्तान का चरित्र हनन करके खुद को किमी काटकर का इकलौता चरित्रवान दोस्त बना चुका था।
ट्रेजरीवाल का किमी काटकर के बाप शांतनु के यहां आना जाना हो गया था। अब वो किमी के साथ कंबाइंड होम स्टडी भी करने लगा था। कप्तान का पत्ता कट गया था।
अब वो अकेले ही पाइथागोरस की प्रमेय हल करता था जबकि किमी काटकर, तरविंद ट्रेजरीवाल के साथ त्रिकोणमिति के ऊंचाई और दूरी के सवाल हल करती दिखती थी।
हाईस्कूल जैसे तैसे पास किया कप्तान ने और उसके बाद कप्तान, तरविंद और किमी काटकर के पिता का अलग अलग शहरों में ट्रांसफर हो गया।
कप्तान किमी और ट्रेजरीवाल का किस्मत कनेक्शन था शायद।
कप्तान ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, ट्रेजरीवाल ने कॉमर्स की और किमी काटकर ने आर्ट्स की।
इसके बाद तीनों एक साथ टकराये दिल्ली में जहां तीनों एक साथ एक ही कंपनी में नौकरी करने इत्तिफाकन पहुंचे।
ये कंपनी थी नागेंद्र मोटी की
रेल छाप चाय।
नागेंद्र मोटी एक बड़ा गुजराती बिजनेसमैन था जो दुनिया के हर कोने में अपनी रेल छाप चाय बेचना चाहता था।
तीनों पुराने दोस्त फिर इस कंपनी में एक साथ मिले।
गिले शिकवे भूले और मिल कर काम करने लगे।
चूंकि तरविंद भी नागेन्द्र मोटी की तरह ही कुटिल और बेईमान था इसलिए दोनों की खूब पटी। मोटी भी तरविंद पर बहुत भरोसा करने लगा था।
हालांकि कप्तान तरविंद की असलियत जानता था इसलिए उसने मोटी को सचेत करना चाहा, पर मोटी ने उसका विश्वास नहीं किया।
उधर तरविंद को समझ आ गया था कि अगर तरक्की करना है तो कप्तान को रस्ते से हटाना होगा।
तरविंद ने एक रोज अपने दोस्तों के साथ पार्टी की और कप्तान और किमी काटकर की दारू में नशीली गोलियां मिला दीं।
उसके बाद उसने कप्तान और किमी की बेहोशी की हालत में आपत्तिजनक तस्वीरें खींच कर नागेन्द्र मोटी को भेज दीं कि आपके एम्पलाई ऐसे चरित्रहीन हैं।
वहीं किमी के होश में आने पर तरविंद ने किमी को बताया कि उसे नींद की गोली खिला के उसके साथ कप्तान ने ईलू ईलू खेल दिया।
नागेंद्र मोटी ने कप्तान मिश्रा और किमी काटकर दोनों को नौकरी से निकाल दिया था ऊपर से किमी काटकर ये बर्दाश्त नहीं कर पाई कि कप्तान ने उससे बेहोशी की हालत में ईलू ईलू कर लिया।
किमी काटकर को तरविंद ट्रेजरीवाल ने अकेले में दिलासा दिया और कप्तान के ऊपर यौन शोषण का आरोप लगवा दिया।
कप्तान को नागेंद्र मोटी ने नौकरी से और किमी काटकर ने अपने दिल से निकाल फेंका था। और उसी रोज कप्तान ने बकार्डी ब्लास्ट की बोतल पकड़ के कसम खाई कि अब ट्रेजरीवाल की तबाही ही उसके जीवन का मकसद है।
कप्तान ने मर्चेंट नेवी में नौकरी शुरू कर दी और साल में 6 महीने पानी में बाकी महीने राजधानी में रहने लगा।
एक दिन कप्तान को अपने घर तक जाने में किसी वीआईपी के काफिले के लिए रोक दिया गया।
जब वो वीआईपी निकला तब कप्तान को पता चला कि उसका दुश्मन तरविंद ट्रेजरीवाल ही वीआईपी है। वीआईपी क्या बल्कि चीफ मिनिस्टर है।
दरअसल तरविंद ने नागेंद्र मोटी को धोखा देकर उसकी कंपनी में फ्रॉड कर अपनी कंपनी बना ली थी।
इससे नाराज होकर मोटी पॉलिटिशियन बन गया था।
मोटी से बचने के लिये तरविंद ने ईसाई मिशनरी वालों की शरण ले ली थी।
धर्म परिवर्तन के बाद पॉलिटीशियन मोटी भी तरविंद का कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे।
विदेशी पैसा खाकर तरविंद ट्रेजरीवाल ने एक देशी नौटंकीबाज बूढ़े के कंधे पर रख के बंदूक चलाई थी और पॉलिटिक्स में आ गया था।
यहां उसने फिर मोटी को मीठा बोल के चूना लगाया और मोटी से डील कर ली कि अपना अपना देखो।मोटी झांसे में आ गया था।
अपने दुश्मन तरविंद को सी एम बना देख कप्तान का गुस्सा फिर जाग उठा था।
कप्तान ने अपने सेल्स मार्केट के अनुभव का प्रयोग करके ट्रेजरीवाल के विरुद्ध जाल बुनना शुरू किया।
सुल्तानपुर का संजय सेन, दिल्ली का मुनीश सिसोदिया, बर्लिंग्टन क्लिनिक का सत्येन्द्र जै,
ये सब और इनके जैसे कई दरअसल कप्तान के आदमी थे जिन्होंने मुख्यमंत्री ट्रेजरीवाल को जेल जाने वाले रास्ते पर चलने पर मजबूर कर दिया।
पर असली खेल किया दीप्ति पालीवाल ने।
जो कप्तान ने प्लांट की थी ट्रेजरीवाल के चरित्र हनन के लिए।
दीप्ति पालीवाल पहले खुद ही तरविंद के घर घुसी फिर इज्जत से खिलवाड़ का आरोप लगा दिया।।
उधर दारू के मामले में ट्रेजरीवाल को जेल जाना पड़ गया।
इधर कप्तान ने आखिरी दांव चला।
इलेक्शन होने वाले थे और कप्तान ने पूरी राजधानी में घर घर ये प्रचार कर दिया कि भी जीत के बाद ट्रेजरीवाल तुमको
उतनी ही इज्जत देगा जितनी दीप्ति को दी।
जनता इस इज़्ज़त का मतलब समझती थी।
जनता ने तरविंद ट्रेजरीवाल की इज्जत उतार दी।
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