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हे मनुज सत्य स्वीकार करो, यह जीवन एक तपस्या है,

जो समाधान का अंग नहीं, वह जीवन एक समस्या है।

है परमेश्वर का वचन यही, सब ग्रन्थों की यह शिक्षा है,

जो करे अनीति विरोध नहीं, वह खुद अनीति का हिस्सा है।

कब भला सत्य ने जय पायी, केवल शांति वक्तव्यों से,

सत्य सदा रक्षित होता, समुचित क्षात्र कर्तव्यों से।

क्यों राम उठाते शस्त्र अगर, रावण लौटा देता सीता,

यदि कौरव सहज मान जाते, क्यों गाते कृष्ण युध्द गीता।

मानवता की रक्षा हेतु, यह प्रण उठाना पड़ता है,

दुष्टों का सर्वनाश करने, फिर रण में आना पड़ता है।

है मानवता का इतिहास यही, यह कथा नहीं एक व्यक्ति की,

जीवन मूल्यों की रक्षा हेतु, अंतिम युक्ति है शक्ति की।

इसलिये हे मनुज तपरत हो, तनस्वाथत भाव से दृढनिश्चय,

सत के अवलम्ब हेतु नर वर, तुम करो असीम शक्ति संचय।

तप-त्याग-विवेक-क्षमा-दया का, तबतक है कुछ अर्थ नहीं,

जबतक मनुष्य शौर्य और, संचित दृढ़ शक्ति समर्थ नहीं।

रावण-दुर्योधन-दुशासन, कल भी थे और आज भी हैं,

अन्याय करे द्रौपदी और सीता संग, दुष्टों का वह समाज भी है।

ये नर निशाचर कब मानेंगे, संतो-शास्त्रों की आज्ञा को,

इसलिए उठो हे शक्ति पुत्र, दोहराओं भीम प्रतिज्ञा को।

मैं भरत वंशी हूँ दृढ़ प्रतिज्ञ, अन्याय न सहन करूंगा मैं,

निज मातृभूमि की रक्षा में , हर शत्रु हनन करूंगा मैं।

हे वज्र सनातन वंशी जागो, निज तन मन को उपयुक्त करो,

मानवता मूल्यों के हित को, खुद को शक्ति संयुक्त करो।

द्वारा : अर्जुन ‘अजेय’

Kaushik


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