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लेखक :-विज्ञान प्रकाश दिनांक :-26/02/2022

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ये कहानी है इतिहास के पन्नों में भुला दिये गये एक वीर की, एक सम्राट की जिसने अंतिम सांस भी हिन्दुत्व को दे दी पर जिसे न किताबों के पन्नों में जगह मिली न किस्से कहानियों में!

ये कहानी है “हेमचंद्र विक्रमादित्य” की!

प्रारम्भिक परिचय

हेमू नृप भार्गव सरनामा,

जिन जीते बाईस संग्रामा!”

सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य या केवल हेमू (१५०१-१५५६) एक हिन्दू राजा थे। यह भारतीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण समय था जब मुगल एवं अफगान वंश, दोनों ही दिल्ली में राज्य के लिये तत्पर थे।‘हेमू’ का जन्म सन् 1501 में राजस्थान के अलवर जिले के मछेरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रायपूर्ण दास था। पिताजी एक गरीब ब्राह्मण थे और पुरोहिताई का कार्य कर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।लेकिन इस्लामी आक्रांताओं के अत्याचार के कारण पिताजी हरियाणा के रेवाड़ी आ गये और यहां व्यापार करने लगे। इस तरह से कर्म के आधार पर वह एक वैश्य हो गए। हालांकि, कुछ लोग इन्हें ब्राह्मण मानने से इंकार करते हैं।अपने परिवार की आर्थिक सहायता के लिए हेमू ने दस्ताकर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. पर सन 1545 में शेर शाह सूरी की मृत्यु के बाद उनके बेटे इस्लाम शाह गद्दी पर बैठे और हेमू को बाज़ार का नियंत्रक बना दिया. धीरे-धीरे अपने काम की बदौलत हेमू मुख्य सलाहकार के पद तक पहुंच गए. शेरशाह ने जब 1540 से 1545 के बीच शासन किया और हुमायूँ जो 15 वर्ष तक भागा हुआ रहा इस दौरान हेमू ने युद्ध का खूब ज्ञान अर्जित

किया।

आदिल शाह और दिल्ली पर अधिकार

इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद आदिल शाह गद्दी पर बैठा जिसने हेमू को मुख्यमंत्री बनाया।

आदिलशाह विलासी और अयोग्य शासक था।

इसलिए उसने हेमू को अपने ग्वालियर किले के प्रधानमंत्री के अलावा अफगान फौज़ का मुखिया भी नियुक्त कर दिया। इस तरह हेमू राज्य के सर्वेसर्वा बन गए।पदभार ग्रहण करते ही हेमू ने कर ना चुकाने वाले अफगान सामंतों को बुरी तरह कुचल डाला। इसके बाद उन्होंने इब्राहिम खान, सुल्तान अहमद खान जैसे बड़े और प्रबल विद्रोहियों को परास्त कर मौत के घाट उतार दिया।ये सब देख आदिलशाह आपा खो बैठा। इधर हेमू बंगाल में विद्रोहियों को कुचल रहे थे उधर हुमायूँ दिल्ली पे वापस आ बैठा।

मगर 6 महीने बाद उसकी सीढ़ी से गिर मृत्यु हो गई जिसके बाद अकबर गद्दी पर बैठा।जिस समय हुमायूँ की मृत्यु हुई उस समय आदिलशाह मिर्जापुर के पास चुनार में रह रहा था। हुमायूँ की मृत्यु का समाचार सुनकर हेमू युद्ध करने के लिए दिल्ली की ओर चल पड़ा।

परिस्थिती अनुकूल थी। अपनी विशाल सेना के साथ वह बंगाल से वर्तमान बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, आदि को रौंदते हुए चल पड़े। उनकी वीरता से भयभीत होकर मुगल कमांडरों में भगदड़ मच गई। आगरा का सिकन्दर खान बिना लड़े ही भाग खड़ा हुआ। हेमू ने बड़ी आसानी से इटावा, कालपी, बयाना, आदि जगहों को अपने अधीन कर लिया।वह ग्वालियर होता हुआ आगे बढ़ा और उसने आगरा तथा दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया।

तरदीबेग खाँ दिल्ली की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया था।

विक्रमादित्य की उपाधि

बेग को हरा कर हेमू ने उसे दिल्ली छोड़ने पर मजबुर कर दिया। ये युद्ध हेमू ने एक दिन में जीत लिया था। इसके बाद पूरे धार्मिक विधि विधान 7 अक्टूबर 1556 को हेमू का राज्याभिषेक हुआ।

सदियों से मुस्लिमों की गुलामी में जकड़े भारत को मुक्त करा हेमू ने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। उन्होंने अपने चित्रों वाले सिक्के जारी किए, राज्य में हिंदू अधिकारियों की नियुक्ति की।अपने साहस और पराक्रम के बल पर हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने दिल्ली का तख्त हासिल किया।इसके बाद 5 नवम्बर 1556 को अकबर के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ हुआ।

पानीपत का द्वितीय युद्ध

इतिहास में यह युद्ध पानीपत के दूसरे युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। हेमू की सेना संख्या में अधिक थी तथा उसका तोपखाना भी अच्छा था किन्तु काल ने कुछ और ही लिख रखा था।6 नवंबर, 1556 का दिन उनके जीवन में एक काल बनकर आया। दुर्भाग्यवश हाथी पर सवार होकर मुगल सेना को मौत के घाट उतार रहे हेमू की आंख में एक तीर आकर लग गया। इसके बाद हेमू बुरी तरह घायल हो गए। इसका फायदा उठाकर बैरम खां ने हेमू को पकड़ लिया।बेरहमी से इस महान हिंदू योद्धा का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।

इतना ही नहीं, इन दरिंदों ने अपनी कायरता दिखाते हुए हिंदू सम्राट का सिर काबुल के एक किले पर लटका दिया गया और धड़ दिल्ली के एक किले के बाहर लटका दिया गया।हेमू की हत्या के बाद बैरम खां ने हेमू का कटा हुआ सिर उनके 80 वर्षिय पिता के पास भेजा और कहा कि वो या तो इस्लाम स्वीकार कर लें या अपनी जान द दें। इस पर इस हिंदू सम्राट के पिता ने जवाब दिया, ‘जिन देवों की 80 वर्ष तक पूजा की है, उन्हें कुछ वर्ष और जीने के लोभ में नहीं त्याग सकता।’बाईस संग्रामों को जीतने वाले

इस वीर योद्धा को क्यों नकार दिया गया। इतिहास को अपनी बपौती समझ उलट पलट करने से सवाल पूछना जितना जरुरी है उतना स्वयं इतिहास पढ़ना भी।

हेमू नृप भार्गव सरनामा।

जिन जीते बाईस संग्रामा।।

जगदम्ब!

-विज्ञान प्रकाश

लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के स्वयं के हैं |

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