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लाश की कहानी
द्वारा – विजयंत खत्री

​विजय पूरा दिन ड्यूटी करके आ कर, खाना खा कर, नहा कर बस सोने की तैयारी ही कर रहा था कि फोन की घंटी बजी। फोन उठा कर देखा तो थाने के हेड मोहर्रिर का फोन था। विजय का माथा ठनक गया। ये आज फ़िर से कुछ और काम के लिए बुला रहे हैं। “पूरा दिन ड्यूटी करके थक गया हूँ अब चैन से सोने भी न देंगे।”विजय की उम्र बीस साल थी। अभी नया नया ही पुलिस में सिपाही भर्ती हुआ था। ट्रैनिंग ख़त्म करके आए हुए अभी दस दिन ही हुए थे, और पहला थाना मिले हुए आज तीसरा ही दिन था। अभी दिन में सुबह आठ से रात आठ तक पिकेट ड्यूटी ही कराई जा रही थी। रोज बारह घण्टे की ड्यूटी के बाद कुछ न कुछ काम के लिए फोन करते ही रहते हैं। जैसे कभी ढाबे से चाय ले आओ, कभी मुल्जिम के पास बैठ जाओ। कभी वायरलेस नोट कर दो लगता है आज भी एक दो घन्टा जाएगा इसी काम मे।विजय ने अनमने मन से फोन उठाया। हेड मोहर्रिर साहब बोले, “अरे चौधरी! जल्दी थाने में आओ। बहुत जरूरी काम है। पांच मिनट में वर्दी पहनकर आ ही जाओ।” इतना कह कर फोन काट दिया। विजय ने सोचा अरे यार ये वर्दी पहनकर आने को क्यों बोल रहे हैं? विजय ने कमरा थाने से पांच सौ मीटर दूर लिया था क्योंकि थाने मे पर्याप्त बैरक नहीं थी। विजय ने वर्दी जल्दी जल्दी पहनी और बूट ढूँढने लगा। बूट थोड़े गंदे हो रखे थे। सोचा थोड़ी पोलिश कर ले, फिर सोचा रात मे किसे दिखाई दे रहे हैं। उसने ऐसे ही बूट पहने और थाने की और पैदल चल दिया।विजय थाने पहुचा तो देखा थाने मे कोई खास हलचल नहीं है इसका मतलब कोई अधिकारी तो बिल्कुल रात्रि चेकिंग पर बिल्कुल नहीं आने वाला है। ऑफिस मे पहुच कर हेड मोहर्रिर साहब को जयहिंद बोल कर खड़ा हो गया। तो हेड मोहर्रिर साहब बोले, “चौधरी एक एक्सिडेंट हो गया है। शायद कोई मर गया है। थाने पर सब लोग ड्यूटी पर है बस ये होम गार्ड धर्मवीर बचा हुआ है। इसे लेकर जाओ और लाश को उठा कर जिला अस्पताल ले जाओ। दरोगा जी को फोन किया है वो भी पहुच जाएंगे तब तक तुम धर्मवीर को लेकर पहुंचो। साथ में मालखाने से एक चादर लेते जाना।” विजय लाश शब्द सुनकर थोड़ा सा हिचकिचाया। तो हेड मोहर्रिर साहब समझ गए और बोले,” चौधरी डरो मत ये तो रोज का काम होता है। अब आदत डाल लो, और सुनो किसी लाश का पोस्टमार्टम कराना पुलिस में पुण्य का काम माना जाता है। किसी क्षत विक्षत शव को समेटना सबके बस का नहीं है। ये पुण्य बहुत कम लोग कमा पाते हैं। अब जल्दी जाओ।”

विजय नया सिपाही था।उसे ये समझ नहीं आया कि वो सच बोल रहे हैं या बस उसे वहां जाने के लिए प्रेरित करने को ये सब कहा।पर जो भी कहा उसके बाद बिना किसी सवाल ज़वाब के विजय मालखाने से एक पुरानी चादर उठा कर धर्मवीर की मोटर साइकिल पर बैठ कर उस और चल दिया जहां वो एक्सीडेंट हुआ था।वहां पहुचने में ग्यारह बज चुके थे। वहां देखा तो एक मोटर साइकिल टूटी हुई पड़ी है और एक व्यक्ति सड़क के बीच में मृत पड़ा हुआ है। उसको देखते ही विजय की बैचैनी बढ़ गयी। उसके आधे सर से ट्रक का टायर उतर गया था। बाकि किसी अंग पर ज्यादा चोट नहीं थी। उसकी उम्र करीब चालीस साल रही होगी ।एक धारीदार शर्ट और साधारण सी पैंट पहने हुए था। लाश के पास जाते ही शराब और ताजे खून की एक विशेष गन्ध दिमाग मे चढ़ने लगी। उस हाईवे पर रात मे ज्यादा वाहन नहीं चलते हैं।

होम गार्ड धर्मवीर ने कहा – “चौधरी जी एम्बुलेंस को फोन कर दिया है तो आती ही होगी तब तक इसे ढक देते हैं।”शव के ऊपर एक साथ लायी हुई पुरानी चादर ढक दी। तब तक पीछे पीछे दरोगा जी भी आ पहुंचे और दो मिनट बाद एम्बुलेंस भी आ पहुची। दरोगा जी ने मौका मुआयना किया और बोला, “इसे चादर में लपेट कर एम्बुलेंस मे रखो। इसकी अभी पहचान नहीं हुई है। सुबह तक शायद पता चल जाएगा कि कौन है, कहां का है?” इतना सुनते ही धर्मवीर ने चादर फैलायी और लाश के पैर पकड़ कर खड़ा हो गया और बोला, “चौधरी उधर से पकड़ कर चादर पर रखवा दो।”

विजय ने उसके सर की तरफ देखा जो आधा कुचला हुआ सडक से चिपक चुका था। विजय थोड़ा हिचकिचाया तो दरोगा जी बोले,” अरे जल्दी उठाओ इतनी रात में भी जाम लगवाओगे क्य़ा?” विजय ने उसके झुक कर उसके कंधों को पकड़ा तो उसका वो क्षत विक्षत चेहरा बिल्कुल साफ दिखाई देने लगा था। उसकी नाक आँखें माथा और बाल आपस में उलझ कर एक मांस का लोथडा बन चुके थे। जिसमें सड़क के कंकर भी मिले हुए थे। फिर जैसे ही उठाया तो उसका भेजा जैसे पिघल गया हो ,आधा वहीं रह गया और खून और मांस से एक तरल जो रात मे तारकोल की तरह लग रहा था टपकने लगा। विजय के बूट और पतलून का नीचा का हिस्सा भी उस तारकोल से सन गया। फिर भी उसे चादर पर रखा। दरोगा ने बोला – “वो बाकी का मांस भी उठा कर चादर पर रख दो।”

विजय के दिमाग ने इस समय तक काम करना बंद कर दिया था। उसे लग रहा था ये बस बुरा और डरावना सपना है।दरोगा जी के कहते ही उसने उस मांस के टुकड़े को हाथ से समेट कर चादर पर रख दिया। फिर लाश को धर्मवीर ने सील कर दिया और उसे एम्बुलेंस मे पीछे की और लेटने वाले दो हिस्सों मे से एक पर रख दिया। दरोगा जी बोले, “इसे जिला अस्पताल ले जाओ सुबह तक इसके साथ ही रहना।तब तक शायद इसके घरवालों का पता चले। रात मे वैसे भी पोस्टमार्टम नहीं होता है।तुम और धर्मवीर चले जाओ सुबह तक रहो,फिर किसी और को भेज देंगे।”

एम्बुलेंस शव को लेकर ज़िला अस्पताल की ओर चल दी। विजय और धर्मवीर मोटर साइकिल पर उसके पीछे हो लिए। आधे घण्टे में वो ज़िला अस्पताल पहुंच गए। वहा जाकर काग़ज़ी कार्यवाहियों को पूरा करके विजय ये सोचने लगा कि अब सुबह तक क्या करना है। इन सबमें रात के साढ़े बारह बज चुके थे।तभी धर्मवीर बोला, “शव को बाहर नहीं रख सकते हैं।क्य़ा पता झपकी लगे और शव के पास अस्पताल में घूमते आवारा कुत्ते मंडराने लगे।” एम्बुलेंस वाले से धर्मवीर ने पुछा, “क्य़ा शव को एम्बुलेंस मे छोड़ सकते हैं।” एम्बुलेंस वाले ने बोला, “बाबू जी !अगर कहीं ना ले जानी पड़े तो चाहे पूरी रात रखे रहो, अगर कहीं गाड़ी लेके जाना पड़ा तब उतार कर रखना पड़ेगा।” धर्मवीर ने बिना सोचे समझे हाँ बोल दिया। फिर धर्मवीर ने विजय से बोला, “सुबह छः बजे से पहले कोई भी थाने से हमारी जगह नहीं आने वाला है। तो कोशिश कीजिए कहीं मौका और जगह देख कर सो जाते हैं। बस एक आदमी एम्बुलेंस मे बैठा रहेगा।” विजय ने पता नहीं क्यों कह दिया,” ठीक है आप अन्दर जाके कहीं आराम करो मैं एम्बुलेंस मे ही हूँ।” एम्बुलेंस मे आगे ड्राइवर सीट पर बैठा ही झपकी ले रहा था। विजय एम्बुलेंस के बाहर बहुत देर तक ऐसे ही खड़ा रहा।

आज जो उसने कोई शव देखा ये कोई उसके जीवन में कोई पहली बार नहीं था। पर जब भी वो इस तरह के क्षत विक्षत शव देखता है तो उसे अपने बचपन की एक घटना याद आ जाती है। वो घटना ऐसी थी कि कभी कभी आज भी सपने में आ जाती है। विजय को भी भयानक थकान और नींद आ रही थी। पर उसे एम्बुलेंस के पास ही रहना था और एम्बुलेंस मे कहीं जगह भी नहीं थी। अचानक उसके दिमाग में पता नहीं क्या हुआ कि उसने एम्बुलेंस का पीछे वाला दरवाजा खोला और शव के बराबर वाली स्ट्रेचर पर बैठ गया। उसके बिल्कुल सामने वो शव था। उसे वो देखता रहा। शव के सर वाली तरफ चादर से खून झलकने लगा था।

अब विजय को नींद आ रही थी।पर यहां बैठते ही नींद गायब हो गई और उसका मन बचपन की एक घटना की और जाने लगा।तब विजय दस साल का था।पांचवी कक्षा गाँव के एक छोटे से पब्लिक स्कूल से पास करके उसका एडमिशन छठी क्लास मे गाँव से तीन किलोमीटर दूर के एक इन्टर कालेज में हुआ था। जुलाई मे एडमिशन हुआ था। स्कूल जाते हुए उसे लगभग एक महीना ही हुआ था। सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि स्कूल पैदल आना जाना करना पड़ता था। गाँव से एक किलोमीटर ईंट वाले खड़ंजे पर चलने के बाद एक बाइपास सड़क आती थी। फिर उस सड़क पर दो किलोमीटर चलना होता था। वो सड़क बिल्कुल सुनसान पड़ती थी। वाहन कम आते जाते थे। और सड़क के दोनों और घने पेड़ और बहुत से बाग पड़ते थे।तो रास्ता डरावना लगता था। पर गाँव से लगभग सौ से ज्यादा बच्चे वहाँ पर पढ़ने जाते थे। जिनमे बड़े लड़कों के पास साइकल और छोटे, जिन्हें साइकल चलानी नहीं आती थी वो पैदल जाते थे। स्कूल सुबह सात बजे से होता था।सुबह जल्दी उठकर छः बजे तक तैयार होकर घर से बच्चों को जाना होता था क्योंकि पैदल जाने में दस साल के बच्चे को इतना टाइम तो लगता ही है।

अगस्त का महीना था। विजय रोज की तरह तैयार होकर घर से स्कूल के लिए निकल लिया।रास्ते में बाकी दोस्तों को आवाज देते हुए अपना ग्रुप पूरा कर लिया। वो सात दोस्त साथ में जाते थे। गाँव के रास्ते के बाद बाइपास सड़क पर पहुंच गए। फिर जैसे ही कुछ आगे बढ़े तो उन्हें सड़क के किनारे पर जो नाले खुदे होते हैं, उनमें दूर से आग जलती हुई दिखाई दी। वहां पर कुछ लोग भी उस आग के पास खड़े थे। कुछ स्कूल जाने वाले बच्चे भी वहां पर खड़े हुए थे। पास जाकर देखा तो वहां एक कार थी जो जल रही थी। तभी एक बच्चा जो पहले से खड़ा था ,उसने बताया कि इस गाड़ी का एक घन्टा पहले एक्सीडेंट हो गया और उसमें आग लग गई थी। उस आग में गाड़ी मे सवार कोई आदमी भी है जो जल रहा है। इतना सुनते ही विजय को एक अनजाने से डर ने घेर लिया।

बाकी बच्चों ने भी ये सुनते ही गाड़ी के पास जाने का साहस नहीं किया। कुछ बड़े लड़के जो शायद बड़ी क्लास में पढ़ते थे वो पास से खड़े होकर देख रहे थे। पता नहीं विजय को अचानक क्या सूझी कि वो गाड़ी की ओर बढ़ चला। उसके मन में ये उत्सुकता जगी कि आखिर जलता हुआ आदमी कैसा लगता है। वो बीस कदम दूर उस कार की ओर चला। वो कार से अभी भी दस कदम दूर था। गाड़ी में आग बहुत फैल गयी थी और बहुत तेजी के साथ जल रही थी। गाँव के एक दो बड़े लोग बोल रहे थे कि “पता नहीं बेचारा कौन है जिसके साथ सुबह सुबह ये सब हुआ, एक्सीडेंट हुआ या किसी ने मार कर गाड़ी मे जला दिया है।” पुलिस को बताने के लिए कोई साइकल पर गया हुआ था। विजय को जलती हुई गाड़ी के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था। तो विजय ने पास खड़े एक बड़े लड़के से पूंछा -” कहां है वो आदमी जो जल रहा है?” लड़के ने कहा -“पास जाकर ड्राइवर वाली सीट पर देखो साफ दिखाई देगा।”

उस छोटे बच्चे विजय को पता नहीं उत्सुकता वश या एक अजनबी भय के उन्माद मे क्य़ा हुआ कि वो गाड़ी के जितना पास जा सकता था गया। पास पहुंच कर गाड़ी से उठती आग की लपटों को वो अपने चेहरे पर महसूस करने लगा था। तीन बड़े लड़के भी पास आ गए और देखने की कोशिश करने लगे। तभी एक लड़के ने लगभग चीखते हुए उंगली से इशारा किया, “देखो वो रहा वो मरा हुआ आदमी जो जल रहा है।” विजय की नजर भी जैसे उस और गयी। विजय का दिमाग बिल्कुल सुन्न हो गया। उसका गला सूख गया। उसके नाक में वो अज़ीब गंध जो शायद मानव मांस जलने से हो रही थी वो आने लगी। साथ ही पास वाले लड़के के बालों मे लगे आँवला के तेल की तेज गंध उस जलते मांस की गंध के साथ उसकी नाक के रास्ते दिमाग मे घुसी जा रही थी। उसने वो जलता हुआ आदमी देखा। वो ड्राइवर सीट पर था उसका शरीर लगभग जल चुका था। बस हड्डियां शेष थी। उसका एक हाथ अभी भी खिड़की से आधा बाहर अधजला दिखाई दे रहा था। उसके चेहरे का मांस जल चुका था पर ऐसा लग रहा था कि उसके बाल अभी सारे नहीं जले थे। वो एक कंकाल की तरह दिखाई दे रहा था जैसा विज्ञान की किताब मे चित्र बना होता है।

इस दृश्य को देखकर विजय न जाने कौनसे भाव से जड़ हो चुका था। उत्सुकता, भय, हठ, जिज्ञासा आखिर वो जो भी भाव था, वो न चाहते हुए भी उस जलते कंकाल को देखे जा रहा था।तभी सायरन बजाती हुई पुलिस की जीप वहाँ पर आती है। जिसमें से चार पुलिस वाले निकलते है। वो आते ही सबसे पहले बच्चों को डांट कर स्कूल जाने को भी कहते हैं। बच्चे पुलिस वालों को देखते ही वहां से दौड़ पड़ते हैं। विजय अभी भी वहीं खड़ा था। एक पुलिस वाले ने आते ही उसकी ओ र देखा और बोला, ” ए छूटके भागों! यहां से स्कूल जाओ। यहां क्या कर रहे हो?”

विजय जो अब तक जड़ खड़ा था उसकी ओर देखता है, और तेजी से वहाँ से स्कूल की और चल देता है।बाकी उसके दोस्त उससे आगे निकल जाते हैं और वो दौड़ कर उनके साथ हो लेता है। सब बच्चे बस उस कार और उसके सवार आदमी के जलने की ही बातें कर रहे थे। एक बोला किये-” ये सेंट्रो गाड़ी है, वो पक्का कोई अमीर आदमी होगा।” दूसरा बोला कि-” लोग बता रहे थे कि वो एक्सीडेंट नहीं था उसे तो मार कर गाड़ी मे लिटा कर पेट्रोल डाल कर जला दिया गया था।” तीसरा बोलता है, “अरे नहीं! उसे तो शायद जिन्दा ही जला दिया गया है तुमने देखा नहीं उसका गाड़ी से हाथ बाहर था और वो ऐसा लग था था जैसे बाँध रखा हो। पक्का किसी ने उसे किडनैप किया और फिर यहा लाकर, जिन्दा जलाकर मार दिया।” यही सब बातें करते करते वो स्कूल पहुच गए।

उस दिन विजय का मन बिल्कुल भी स्कूल मे नहीं लग रहा था ।वो बस उसी आदमी के बारे मे सोचे जा रहा था। वो सोच रहा था कभी वो आदमी भी बच्चा रहा होगा। उसके मम्मी पापा कहां होंगे? उसे किसने मारा होगा? जलने पर तो बहुत दर्द होता है, क्य़ा उसे भी दर्द हुआ होगा? आखिर उसका भी जन्म हुआ होगा। जन्म लेने से लेकर अब तक उसकी भी कुछ कहानी रही होगी। यही सोचते हुए पता नहीं उसे अजीब से डर भी लगे जा रहा था। ऐसे बेचैनी जिसे वो ख़ुद नहीं समझ पा रहा था। आज उसे भूख भी नहीं लग रही थी। आज घर ये लाया हुआ टिफ़िन भी नहीं खोल पाया था।किसी दोस्त से बात करने या खेलने का भी मन नहीं हुआ। स्कूल की छुट्टी के बाद वो सब दोस्तों के साथ घर के लिए चल दिया।

वापसी में वो सब फिर वहीं रुके जहां वो गाड़ी जल रही थी। अब आग बुझ चुकी थी पर थोड़ा बहुत धुआं अभी भी आस पास की झाड़ियों से निकल रहा था। सब बच्चे डरे हुए थे पर विजय को देखना था। विजय दौड़ कर उस गाड़ी के पास गया। उसने ड्राइवर सीट पर देखा जहां वो आदमी था। वहां वो अब नहीं था। शायद पुलिस वाले उसे ले गए और उसके घरवाले आ गए होंगे। पर उसमें तो बस हड्डियां ही बची थी। कैसे ले गए होंगे? उसके घरवाले उसे पहचानेंगे कैसे? इस तरह के अजीब सवाल विजय के बाल मन में गूंज रहे थे। उसे वो तीखी बदबू जो सुबह महसूस हुई थी अभी भी हल्की हल्की महसूस हो रही थी। और साथ मे वो आँवला के तेल के जैसी गंध भी आ रही थी। तब तक भी विजय का मन जलते इंसान के मांस की बदबू और आँवला के तेल की गंध में अन्तर नहीं कर पा रहा था। उसका मन ये मान चुका था कि जलते हुए इंसानी शरीर से आँवला के तेल जैसी गंध आती है। फिर कुछ देर बाद वो सब वहां से घर की और चल दिये।

आज घर आकर भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था। ना खेलने का मन हुआ ना स्कूल का होम वर्क करने का। वो अपनी दादी के पास गया और चुप चाप लेट गया। दादी भी थोड़ा नींद मे थी फिर भी उन्होंने उसे अपनी ओर करके अच्छे से लिटा लिया। अब भी विजय वही सब सोच रहा था। आज खाना घर आकर भी नहीं खाया था उसने। उसके पेट मे अजीब सी हलचल थी। पानी का स्वाद भी आज अजीब लग रहा था। फिर यही सब सोचते सोचते उसे नींद आ गयी।कुछ घन्टों बाद जब उसकी आँख खुली तो दादी उसके पास ही थी। फिर बोली कि – “चल मेरे साथ डॉक्टर से दवा ले आते हैं। तुझे तेज बुखार हो रहा है।” वो दादी के साथ डॉक्टर के यहां गया। डॉक्टर ने नाप कर बुखार देखा तो बोला-” तेज बुखार है, दवा देकर आराम कराओ इसे।”

घर आकर थोड़ा बहुत खाना खाकर, दवाई लेकर विजय सो गया। रात में भी सोने मे बहुत परेशानी हुई। जब भी आँख बंद करने की कोशिश करता तो उसे वो आग में जलता हुआ व्यक्ति ही दिखाई देता। फ़िर भी वो बच्चा था तो थक कर नींद आ ही गई।सुबह उठा तो बुखार कुछ कम तो था पर तबीयत अभी भी ठीक नहीं थी। घरवालो ने स्कूल नहीं भेजा था। पूरा दिन विजय घर पर ही लेटे रहा। घरवाले अब चिंता करने लगे थे क्योंकि विजय एक मिनट भी घर मे रुकने वाले बच्चों में से नहीं था। शाम को दादी ने नज़र उतारने वाला काम किया। उस शाम बुखार नहीं रहा। उस रात थोड़ी अच्छी नींद आयी पर वो सब अभी भी दिमाग में चल रहा था। तीसरे दिन भी घरवालों ने स्कूल नहीं भेजा। आज वो अपने दादा, दादी के साथ खेत पर चला गया।

विजय का वो छोटा मन उस बात को सहन नहीं कर पा रहा था। उसने अपनी दादी से को वो सारी बाते ऐसे बताई जैसे कोई समाचार दे रहा हो और उसे कोई फर्क नहीं पड़ा हो। पर दादी समझ गयी कि ये उसी घटना की वजह से इस हालत मे है। दादी ने दादा को जोर से आवाज दी, “अजी सुनियो! देखो लड़का क्य़ा खबर दे रहा है? आपको नहीं पता क्य़ा गाँव के बायपास वाली सड़क पे क्य़ा हुआ?” विजय के दादाजी भी वहां आ गए।

दादी ने कहा कि – “अपने दादा को भी बताओ क्य़ा हुआ था?” दादी ऐसे बात कर रही थी जैसे कौतूहल का विषय हो। विजय ने सारी घटना दादा जी को भी बताई। दादा जी ने बात बहुत ध्यान से सुनी। फिर दादा जी जैसे कुछ सोच मे पड़ गए और थोड़ी देर बाद बोले,” अरे हाँ! वो मुझे भी पता है। वो एक बहुत बुरा आदमी था। नामी बदमाश था, बच्चों के अपहरण करके मारता था। भगवान ने बहुत अच्छा किया कि ऐसा आदमी ऐसी मौत मरा।”

ये सब सुनते ही विजय के मन से सारा बोझ जैसे हल्का हो गया हो। उसके चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ गई। दादा जी की ये बात सुनते ही विजय के मन मे आया कि ये बात तो सब दोस्तों को बतानी चाहिए। फिर उसकी बीमारी जैसे गायब हो गई हो और वो घर की और दौड़ता हुआ चल दिया।

विजय को किसी के उसे पुकारने की आवाज़ सुनाई दी। उसकी आँख खुल गई। अरे ये बचपन की बातें सोचते हुए उसे एम्बुलेंस मे उस लाश के बराबर वाली सीट पर नींद आ गई थी। उसने मोबाइल मे देखा तो सुबह के साढ़े चार बज चुके थे और एम्बुलेंस का ड्राइवर आवाज लगा रहा था। वो बोला, “साहब ये लाश उतार कर लीजिए। कॉल आयी है एम्बुलेंस ले जानी होगी।” विजय ने धर्मवीर को फोन किया तो धर्मवीर भी आ गया। फिर उन लोगों ने उस लाश को एम्बुलेंस से उतार कर अस्पताल के अंदर ही एक पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर रख दिया।

धर्मवीर बोला, “चौधरी जी, पोस्टमार्टम वालों को यही रखा जाता है जब तक कोई घर से, और डॉक्टर ना आ जाए।” फिर तभी थाने से हेड मोहर्रिर का फोन आया। वो बोले कि आधे घण्टे मे तुम्हारे दोनों की जगह किसी और को भेज रहा हूँ बस तब तब तक रुक जाओ।” धर्मवीर बोला चौधरी जी,” मैं बाहर से चाय ले आता हूँ जब तक वो लोग आते हैं चाय पी लेते हैं।” फिर वो चाय लेने चला गया।

विजय की जेब में एक सिगरेट पड़ी हुई थी। उसने वो निकाली और सुलगा कर पीने लगा। फिर सोचने लगा। कि शायद दादा जी ने शायद मेरी हालत को देखकर बचपन मे उस मरे हुए इंसान के बारे मे झूठी कहानी सुनाई थी।वास्तव मे वो आदमी कौन था? उसके साथ क्य़ा हुआ था? ये सब दादाजी को भी नहीं पता था। पर उन्हें ये ज़रूर पता था कि कैसे बच्चे के बाल मन से वो सब दूर करना था। दादी को गुजरे 6 साल और दादा को गुजरे 1 साल हो चुका था। पर अब शायद उनकी बातों का मतलब समझ आ रहा था।

हर मरे हुए इंसान की एक कहानी होती है जो उसके जन्म से शुरू होकर उसके मृत्यु के दिन तक जाती है। कई बार जीवित लोग उसे भुलाने के लिए अपने मन में अपने हिसाब से कहानियां गढ़ते हैं। पर अब विजय को ये कहानियां ख़ुद ही गढनी थीं, क्योंकि अब उसके जीवन में इन कहानियों से रोज ही पाला पड़ने वाला था। मरने वाला व्यक्ति अच्छा हो तो लोग उसे याद करते हैं, दुखी भी होते हैं। पर अगर मन को समझा लिया जाए कि उसे उसके कर्मो का फल मिला है या भगवान ने जो किया है अच्छा ही किया है तो जाने वाले को जल्दी भुलाया जा सकता है।

विजय का मन भी इस इंसान के बारे में एक कहानी गढ़ चुका था। विजय ने सिगरेट का आखिरी घूँट भरकर उसे फेंका और सिगरेट को पैरों से मसलते हुए, बड़बडाकर बोला, “शराब के नशे मे धुत्त होकर कोई गाड़ी चलाएगा तो एक्सीडेंट तो होगा ही।”

विजयंत खत्री
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Vijyant Khatri


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